भारत का चर्च न तो चर्च संसाधनों पर अपनी पकड़ ढीली करना चाहता है और न ही वह वेटिकन और अन्य पश्चिमी देशों का मोह त्यागना चाहता है।
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जर्मन धर्मशास्त्री हेलमुट थेइलिके ने लिखा, “वह मनुष्य जो समयानुसार अपनी पकड़ ढीली करना नहीं जानता, जो परमेश्वर में शांति और विश्वास के आनन्द को नहीं जानता-उसमें जो अपने उद्देश्य हमारी सहायता के बिना (या हमारे बावजूद) करना जानता है, उसके हाथों में छोड़ना नहीं जानता जो पौधों को पेड़ बना देता है...ऐसा मनुष्य अपने बुढ़ापे में केवल एक निराश और दुखी मनुष्य ही हो सकता है।